पारंपरिक खेती में घाटा और बेरोजगारी की खटास पर शहद ने शिवचंद्र के जीवन में तरक्की की मिठास भरी। वह मधुमक्खी पालन करके किसान से कारोबारी बन गए। इससे वह सात से आठ लाख रुपये सालाना का मुनाफा कमा रहे हैं। आज युवाओं के रोल मॉडल हैं।
उत्तर प्रदेश में गोंडा के केशवपुर पहड़वा निवासी शिवचंद्र सिंह एक समय पारंपरिक खेती में घाटा और रोजगार की तलाश में हिम्मत हारकर घर बैठ गए थे। लेकिन, समय बदला और आज वह युवाओं के रोल मॉडल हैं। यह सब हुआ मधुमक्खी पालन से। कुशल प्रबंधन और लगन से बेरोजगारी की खटास पर शहद की मिठास अब भारी पड़ रही है। शिवचंद्र हर वर्ष 15 सौ से दो हजार क्विंटल तक फ्लेवर्ड शहद का उत्पादन करके सात से आठ लाख रुपये शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं। इस काम में पत्नी कल्पना सिंह के साथ चार सहयोगी भी हाथ बटा रहे है
शिवचंद्र पहले एक निजी विद्यालय में पढ़ाते थे। वेतन कम था। ऐसे में घर चलाने में दिक्कत होती थी। बच्चों की पढ़ाई पर भी संकट था। उद्यान विभाग में तैनात जितेंद्र सिंह से उनकी दोस्ती थी। उन्होंने ही मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित किया। पहले पांच बॉक्स से कार्य शुरू किया। आज 250 से अधिक बॉक्स में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। एक बॉक्स से करीब छह से आठ किलो शहद मिल जाता है।
आज शिवचंद्र के पास सरसों, यूकेलिप्टस, नीम, अजवाइन, तुलसी, जामुन, बेर, बबूल, करंज व लीची फ्लेवर का शहद उत्पादित कर रहे हैं। इसके लिए उन किसानों से समन्वय करते हैं जहां ऐसे पौधे और फसलें होती हैं। वहां मधुमक्खियों का बॉक्स लगाकर शहद तैयार करते हैं।
वर्ष 2020 में अपने ही खेतों में सरसों की फसल लगी थी। वहीं मधुमक्खियों को ले जाकर शहद का उत्पादन शुरू किया। उस समय बस पांच किलो शहद तैयार हुआ, जो स्थानीय बाजार में ही बिक गया। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ली और फ्लेवर्ड शहद का उत्पादन शुरू किया। इससे मांग बढ़ी। अब धनिया और तिल फ्लेवर्ड शहद की भी तैयारी है।
पहले काम छोटा था तो अपने ही फार्म से हो जाता था। मगर काम बढ़ने पर मधुमक्खियों के भोजन (फूल व पराग) के लिए एक से दूसरी फसलों व फूलों के क्षेत्र में जाने और लोगों को तैयार करने में कठिनाई आई। सबसे बड़ी समस्या क्षेत्र की जानकारी की रही। पूरे भारत के जलवायु व फसलों के अध्ययन में तीन वर्ष लग गए।
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