क्या है लिपुलेख दर्रा: नेपाल ने क्यों जताई यहां से भारत-चीन के कारोबार पर आपत्ति, MEA ने क्यों फटकारा? जानें|
यह लिपुलेख दर्रा क्या है और यह कहां है? इस दर्रे से जुड़ा इतिहास क्या रहा है? नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति क्यों जताई है? और अगर भारत-चीन के बीच व्यापार लंबे समय से जारी था तो क्या नेपाल ने पहले भी इस मुद्दे को उठाया था?
भारत के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को नेपाल की उन चिंताओं को सिरे से खारिज कर दिया, जिसके तहत पड़ोसी देश ने लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन के बीच होने वाले कारोबार पर सहमति को लेकर आपत्ति जताई थी। दरअसल, भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा लंबे समय से कारोबार का मार्ग रहा है। हालांकि, 2020 में पहले सीमा पर टकराव और फिर कोरोना महामारी के बाद से ही दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र से व्यापार रुका था। अब जब भारत-चीन ने लिपुलेख दर्रे से फिर कारोबार करने पर हामी भरी है तो नेपाल ने इस मुद्दे को उठाया है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर यह लिपुलेख दर्रा क्या है और यह कहां है? इस दर्रे से जुड़ा इतिहास क्या रहा है? नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति क्यों जताई है? और अगर भारत-चीन के बीच व्यापार लंबे समय से जारी था तो क्या नेपाल ने पहले भी इस मुद्दे को उठाया था?
ऐसे में धार्मिक और कूटनीतिक दोनों ही कारणों से लिपुलेख दर्रा भारत के लिए अहम रहा है। धार्मिक इसलिए क्योंकि हिंदुओं, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों के लिए कैलाश मानसरोवर अलग अहमियत रखता है। कूटनीतिक इसलिए, क्योंकि भारत-चीन सीमा पर यह सड़क कनेक्टिविटी, सैन्य लॉजिस्टिक्स और व्यापार मार्ग के तौर पर अहम है।
नेपाल की तरफ से लिपुलेख दर्रे पर कड़ी आपत्ति जताई गई है। उसके विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के क्षेत्र महाकाली नदी के पूर्व में स्थित हैं और ऐतिहासिक रूप से नेपाल का हिस्सा हैं। लिपुलेख नेपाल का अविभाज्य हिस्सा है और इन्हें नेपाल के आधिकारिक नक्शे और संविधान में शामिल किया गया है।
नेपाल ने भारत और चीन दोनों से लिपुलेख दर्रे के जरिए कारोबार न करने की अपील की है। हालांकि, भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।