Gulshan Bawra: क्लर्क से बने लेखक, चार दशकों में लिख डाले 240 गाने; ‘मेरे देश की धरती..’ के लिए मिला सम्मान
Gulshan Bawra Death Anniversary: आज बॉलीवुड के मशहूर सॉन्ग राइटर गुलशन बावरा की पुण्यतिथि (7 अगस्त 2009) है। उनके गीतों के बिना 70-80 के दशक की हिट फिल्में पूरी नहीं होती हैं। जानिए, कैसे एक क्लर्क से वह बॉलीवुड के चर्चित सॉन्ग राइटर बने? किन मशहूर गीतों को अपनी कलम से गुलशन बावरा ने लिखा?
विभाजन का दंश झेलकर गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा पाकिस्तान से भारत आए थे। शुरुआती दौर में बड़ी बहन के घर रहे, फिर भाई की नौकरी दिल्ली में लगी तो साथ चले आए। दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। कॉलेज के दिनों में ही गुलशन बावरा को शायरी, कविता करने का शौक हो गया था। कैसे वह दिल्ली से मायानगरी बंबई (मुंबई) आए? आगे चलकर किन-किन मशहूर गीतों को लिखकर बॉलीवुड में मशहूर हुए? विस्तार से जानिए गुलशन बावरा की जिंदगी और करियर से जुड़ी कुछ खास बातें।
क्लर्क की नौकरी करते हुए फिल्मों में किया संघर्ष
गुलशन बावरा ने जब अपनी ग्रेजुएशन पूरी की तो नौकरी की तलाश करने लगे। उन्होंने रेल्वे में नौकरी के लिए आवेदन किया। कोटा, राजस्थान में नौकरी मिल भी गई लेकिन जब वहां पहुंचे तो सारे पद भर गए थे। ऐसे में उनको बंबई में क्लर्क की नौकरी मिली। इस तरह वह साल 1955 में मायानगरी पहुंच गए। नौकरी करते-करते उन्होंने अपने लिखने के शौक को जिंदा रखा। वह फिल्मों में काम पाने के लिए कोशिश करते रहे। इसी संघर्ष के दौरान उन्हें म्यूजिक कंपोजर कल्याणजी उर्फ विरजी शाह ने फिल्म ‘चंद्रसेना(1959)’ में एक गाना लिखने का मौका दिया। इस गाने के बोल थे ‘मैं क्या जानू काहे लागे ये सावन मतवाला…’, इस गाने को लता मंगेशकर जी ने अपनी आवाज में गाया था। इसी फिल्म के बनने के दौरान फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर शांतिभाई पटेल ने गुलशन को बावरा उपनाम दिया। इसके बाद से ही वह गुलशन बावरा के नाम से मशहूर हुए।
गुलशन बावरा ने अपने 42 साल के करियर में लगभग 240 गाने लिखे हैं। कल्याणजी और आनंदजी, शंकर जयकिशन, आर. डी. बर्मन जैसे मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर के साथ काम किया है। आर.डी.बर्मन के साथ तो उन्होंने सबसे ज्यादा काम किया। फिल्म ‘हकीकत(1995)’ के लिए गुलशन बावरा ने एक गाना ‘ले पप्पियां झप्पियां पाले हम’ लिखा। इस गाने को लेकर खूब विवाद हुआ, गुलशन बावरा पर अश्लील गाना लिखने का आरोप लगा। इसके बाद उन्होंने एक फिल्म ‘रफू चक्कर(1975)’ के लिए गाने लिखे। इस फिल्म के बाद बॉलीवुड को गीतकार के तौर पर अलविदा कह दिया।
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