बिहार के बाहुबली: छोटे सरकार की अपराध कथाएं ‘अनंत’, आठ की उम्र में हुआ पहला मुकदमा; सियासी हनक की है ऐसी कहानी

बिहार चुनाव से जुड़ी नई सीरीज- ‘बिहार के बाहुबली’ की पहली कड़ी में आज बात अनंत कुमार सिंह की। जिनका नाम पहली बार पुलिस केस में आठ साल की उम्र में ही दर्ज हो गया था। तब से लेकर अब तक अनंत कुमार पर दर्जनों केस हो चुके हैं। इनमें हत्या, हत्या की साजिश, असलहे रखने से जुड़े केस, अपहरण, वसूली, आदि शामिल हैं।

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‘बिहार’ और ‘बाहुबली’ दो ऐसे शब्द हैं, जिन्हें राजनीति में एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है। बिहार में कई बाहुबलियों ने राजनीति में अपनी धमक दिखाई है। कई अभी भी सक्रिय हैं। मोहम्मद शहाबुद्दीन, आनंद मोहन से रीत लाल यादव तक इस सूची में शामिल हैं। इस सूची में एक बड़ा नाम अनंत कुमार सिंह का भी है, जिन्हें बिहार की राजनीति में ‘छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता है।

बिहार चुनाव से जुड़ी नई सीरीज- ‘बिहार के बाहुबली’ की पहली कड़ी में आज बात अनंत कुमार सिंह की। जिनका नाम पहली बार पुलिस केस में आठ साल की उम्र में ही दर्ज हो गया था। तब से लेकर अब तक अनंत कुमार पर दर्जनों केस हो चुके हैं। इनमें हत्या, हत्या की साजिश, असलहे रखने से जुड़े केस, अपहरण, वसूली, आदि शामिल हैं। इतना ही नहीं उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी केस दर्ज है।
कौन हैं बिहार के छोटे सरकार- अनंत कुमार सिंह?
अनंत कुमार सिंह का जन्म 1961 में पटना जिले के बाढ़ प्रखंड में आने वाले नदावां गांव में एक भूमिहार परिवार में हुआ। चार भाइयों में वे सबसे छोटे थे। अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह 1985 में मोकामा सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह ‘धीरज’ से हार मिली। धीरज इससे पहले 1980 में भी मोकामा से जीते थे। 1990 का विधानसभा चुनाव आया तो दिलीप सिंह को जनता दल से टिकट मिल गया। जनता दल से चुनाव लड़े दिलीप सिंह ने इस चुनाव में जीत दर्ज की। 1995 में वे फिर मोकामा सीट से विधायक चुने गए। साल 2000 में दिलीप सिंह ने जनता दल से अलग होकर बने लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें एक और बाहुबली सूरजभान सिंह के हाथों हार मिली। दिलीप सिंह तो इसके बाद पटना से एमएलसी बनकर विधान परिषद चले गए। 2005 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो मोकामा से अनंत सिंह पहली बार चुनाव मैदान में उतरे।
आपराधिक इतिहास: आठ साल की उम्र में  हुआ पहला केस
अनंत सिंह की कहानी उनके चुनावी राजनीति में आने से शुरू नहीं होती। मोकामा में बाहुबली अनंत सिंह की धमक बहुत पहले से थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में दिए गए हलफनामे के मुताबिक, उन पर पहले केस की तारीख है 13 मई 1979। यानी 18 साल की उम्र में। केस दर्ज हुआ था हत्या की धाराओं में। हालांकि, कई स्थानीय हलकों में दावा किया जाता है कि अनंत कुमार सिंह पहली बार नौ साल की उम्र में जेल गए थे और बाद में रिहा कर दिए गए।एक रिपोर्ट की मानें तो अनंत सिंह का पहला केस हत्या से जुड़ा था और यह स्थानीय कहानी जैसा है। अनंत के सबसे बड़े भाई बिराची उस वक्त गांव के बड़े जमींदार और मुखिया हुआ करते थे, जब पूरे राज्य में नक्सली जमींदारों के खिलाफ जंग छेड़ रहे थे। नक्सलियों के समर्थक इस आंदोलन से प्रभावित होकर जमींदारों की हत्या कर रहे थे, उन्होंने बिराची को भी मार दिया था। इसके बाद वे गंगा नदी से नाव के रास्ते भाग निकले थे। अनंत सिंह ने इन हत्यारों को कई महीनों तक ढूंढा। कहानी है कि जब अनंत को इन हत्यारों की जानकारी मिली तो उन्होंने तैरकर नदी पार की और हत्यारे को जान से मार दिया। हालांकि, यह कहानी कितनी सच है और कितनी किवदंती, ये या तो अनंत सिंह जानते हैं या गांव के लोग।

अनंत सिंह के चुनावी हलफनामे पर नजर डालने पर ही उनके ऊपर लगे केसों की आगे की जानकारी मिलती है। इसके मुताबिक, उन पर 2020 विधानसभा चुनाव से पहले तक कुल 38 मामले दर्ज थे। हालांकि, एक मीडिया समूह ने कुछ समय पहले ही पटना हाईकोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से दावा किया था कि अनंत सिंह पर 50 से ज्यादा केस दर्ज हैं। 2015 और 2019 में उन्हें दो मामलों में दोषी भी पाया जा चुका है।

2015 में एक मामले में पटना पुलिस ने अनंत सिंह के घर पर छापेमारी की थी। यह रेड 17 जून को चार युवाओं के अपहरण के मामले के बाद डाली गई थी। इसमें अनंत सिंह के घर से इंसास राइफल, बुलेटप्रूफ जैकेट और खून से सने कपड़े मिले थे। अगले दिन पुतुष यादव नाम के एक अपह्रत का शव अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां से मिला था। इस मामले में बाद में अनंत सिंह इस कदर घिरे कि भाजपा और राजद दोनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनकी गिरफ्तारी की मांग कर दी। बाद में उन पर केस भी चला। चौंकाने वाली बात यह है कि एक साल पहले यानी 2014 में अनंत सिंह पर बिहटा इलाके में एक बिल्डर के अपहरण का मामला दर्ज हुआ था और वे बाद में जेल भेजे गए थे।

ऐसा ही एक केस है 2019 का। जब अगस्त में पुलिस ने एक बार फिर अनंत सिंह के घर पर छापा मारा। यहां पुलिस को उनके घर से हैंड ग्रेनेड मिले। हालांकि, अनंत सिंह खुद गिरफ्तारी से बच निकले और एक हफ्ते बाद नाटकीय ढंग से दिल्ली की एक स्थानीय अदालत में सरेंडर करने में सफल रहे। इस केस में अनंत सिंह को 22 महीने बाद जमानत मिली।
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Author: ILMA NEWSINDIA

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