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Bihar Election Exit Polls: तुक्के पर टिका एक्जिट पोल? चुनाव आयोग को जारी करना चाहिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल|

Bihar Election Exit Polls: तुक्के पर टिका एक्जिट पोल? चुनाव आयोग को जारी करना चाहिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल|
Bihar Election Exit Polls: तुक्के पर टिका एक्जिट पोल? चुनाव आयोग को जारी करना चाहिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल|

Bihar Election Exit Polls 2025: भारतीय चुनावी इतिहास स्वयं यह बताता है कि एक्जिट पोल अक्सर जमीनी राजनीतिक वास्तविकताओं को मापने में विफल रहे हैं। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी बड़े एक्जिट पोल एनडीए के सत्ता में लौटने के अनुमान पर एकमत थे |

Bihar Election Exit Polls: तुक्के पर टिका एक्जिट पोल? चुनाव आयोग को जारी करना चाहिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल|

विस्तार

Bihar Election Exit Polls 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान के बाद विभिन्न टीवी चैनलों, डिजिटल प्लेटफॉर्मों और सोशल मीडिया पर कई एक्जिट पोल सामने आए हैं। इनमें से कुछ सर्वेक्षण ऐसी एजेंसियों द्वारा प्रकाशित किए गए हैं जिनका न तो कोई स्थापित शोध इतिहास ज्ञात है और न ही उनके काम की पारदर्शी जानकारी उपलब्ध है। यह परिदृश्य स्वाभाविक रूप से एक्जिट पोल की विश्वसनीयता और उनके वैज्ञानिक आधार पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है।

लोकतंत्र में चुनाव केवल मतों की गिनती नहीं, बल्कि मतदाताओं की सामूहिक इच्छा और राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। ऐसे में अपारदर्शी और मनमाने आधार पर किए गए एक्जिट पोल जनमत को प्रभावित कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को असंतुलित कर सकते हैं।

एक्जिट पोल का उद्देश्य तभी सार्थक होता है, जब वह वैज्ञानिक तरीके से किए गए प्रतिनिधिक सैंपल, उचित सैंपलिंग विधि, स्पष्ट प्रश्नावली और विश्वसनीय डेटा विश्लेषण पद्धति पर आधारित हो। लेकिन आज बड़ी संख्या में एक्जिट पोल एजेंसियां न तो अपना सैंपल साइज सार्वजनिक करती हैं और न यह बताती हैं कि किन सामाजिक समूहों, भौगोलिक क्षेत्रों और जनसांख्यिकीय श्रेणियों को उनके सर्वेक्षण में शामिल किया गया। बिना इस बुनियादी पारदर्शिता के कोई भी एक्जिट पोल वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं, बल्कि चुनावी तुक्का बनकर रह जाता है।

भारतीय चुनावी इतिहास स्वयं यह बताता है कि एक्जिट पोल अक्सर जमीनी राजनीतिक वास्तविकताओं को मापने में विफल रहे हैं। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी बड़े एक्जिट पोल एनडीए के सत्ता में लौटने के अनुमान पर एकमत थे। मीडिया का विमर्श, विश्लेषण और सार्वजनिक राय इसी दिशा में आकार ले रही थी। लेकिन परिणाम आए तो राजनीति की दिशा पूरी तरह बदल गई और यूपीए सत्ता में आ गई। यह घटना स्पष्ट करती है कि यदि डेटा का आधार कमजोर हो, तो एक्जिट पोल लोकतांत्रिक धारणा को भ्रमित कर सकता है।

Bihar Election Exit Polls 2025 Exit polls based on guess Election Commission should issue standard protocol

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2007 इसका एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है। लगभग सभी एक्जिट पोल गठबंधन सरकार या त्रिशंकु विधानसभा का दावा कर रहे थे। लेकिन परिणाम में मायावती के नेतृत्व में बसपा ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। एक्जिट पोल सामाजिक गठबंधनों, स्थानीय नेतृत्व की पकड़ और जातीय पुनर्संरचना की समझ हासिल नहीं कर पाए।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी स्थिति दोहराई गई। कई प्रतिष्ठित एजेंसियों ने एनडीए को दो-तिहाई बहुमत के समीप दिखाया, जबकि वास्तविक परिणाम काफी भिन्न रहे। यह दर्शाता है कि सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन, मतदाता की मनोवैज्ञानिक प्राथमिकताएँ और स्थानीय मुद्दों की गतिशीलता को समझना मात्र संख्यात्मक सैंपलिंग से संभव नहीं।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि एक्जिट पोल तभी विश्वसनीय हो सकता है, जब वह पारदर्शी, पद्धतिगत और क्षेत्रीय-सामाजिक संवेदनशीलता पर आधारित हो। इसलिए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग एक अनिवार्य स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल जारी करे, जिसके तहत कोई भी एक्ज़िट पोल रॉ डेटा और शोध पद्धति के बिना सार्वजनिक न किया जा सके।

Bihar Election Exit Polls 2025 Exit polls based on guess Election Commission should issue standard protocol

चुनाव आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि हर सर्वे एजेंसी निम्नलिखित विवरण आयोग के समक्ष जमा करे:

1. सैंपल साइज और उसका जिले, विधानसभा और सामाजिक वर्गों में अनुपातिक वितरण।
2. सैंपलिंग पद्धति और उसका चयन-तर्क।
3. प्रश्नावली (मॉड्यूल) की भाषा, संरचना और तटस्थता।
4. सर्वेक्षण टीम की योग्यता और प्रशिक्षण प्रक्रिया।
5. डेटा प्रोसेसिंग, वेटिंग, मार्जिन ऑफ एरर और कॉन्फिडेंस लेवल के मानक।

बिना इन जानकारियों के कोई भी एक्ज़िट पोल केवल अनुमान और प्रचार का उपकरण बन सकता है। बिहार जैसे सामाजिक-राजनीतिक रूप से जटिल राज्य में, जहां जातीय, भौगोलिक, भाषाई, वर्गीय और वैचारिक परतें एक-दूसरे में गुंथी हुई हैं, सतही सर्वेक्षणों के आधार पर निष्कर्ष निकालना न शोध है और न ही पत्रकारिता।

अतः यह समय है जब एक्जिट पोल को चुनावी तुक्का नहीं, बल्कि वैज्ञानिक शोध प्रक्रिया के रूप में मान्यता दी जाए। लोकतंत्र की विश्वसनीयता तथ्य, पारदर्शिता और प्रमाणिकता पर टिकी होती है और इसके लिए चुनाव आयोग का स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल अब अनिवार्य कदम है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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Author: ILMA NEWSINDIA

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