पांच साल पहले आज ही के दिन वो मनहूस वक्त आया था जो ‘साहबजादे इरफान अली खान’ को उनके चाहने वालों से दूर कर गया।
29 अप्रैल 2020 में मात्र 53 वर्ष की उम्र में इरफान हम सबको अलविदा कह गए। अपने 30 साल के करियर में इरफान ने पद्मश्री, राष्ट्रीय पुरस्कार और छह फिल्मफेयर अवॉर्ड समेत कई पुरस्कार अपने नाम किए थे।
‘हासिल’ का रणविजय सिंह हो या ‘मकबूल’ का मियां मकबूल, ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ का मॉन्टी हो या ‘हैदर’ का रूहदार.. इरफान अपने हर किरदार को रूह में समां लेते थे और उसे निभाकर वो खुद दर्शकों की रूह में समां जाते थे…
आज इरफान की पांचवी बरसी पर अमर उजाला ने उनके दोस्त व कई फिल्मों में सह-कलाकार रहे बृजेंद्र काला और फिल्म ‘पीकू’ में सह-कलाकार रहे बालेंद्र बालू से बात की। पढ़िए इरफान से जुड़ी कुछ यादें इन दोनों कलाकारों की जुबानी…
दिन में काम करते और रात में क्रिकेट खेलते थे- बृजेंद्र काला
‘इरफान को मैं तब से जानता था जब से वो मुंबई आए थे। मेरी मुलाकात उनसे तिग्मांशु धूलिया (निर्देशक) के जरिए हुई थी। हमने पहली बार साथ में एक टीवी शो था ‘हम बॉम्बे नहीं जाएंगे’ उस पर काम किया था। इसमें इरफान के अलावा मनोज बाजपेयी, संजय मिश्रा और निर्मल पांडे जैसे कलाकारों ने भी काम किया था। शो के कुछ एपिसोड मैंने और कुछ सौरभ शुक्ला ने लिखे थे। हम सभी साथ ही काम करते थे। शाम में क्रिकेट खेलते थे, रात को तिग्मांशु के यहां बैठकर बातें करते थे।’
उस वक्त हम सभी स्ट्रगल कर रहे थे
‘फिर मैंने स्टार बेस्टसेलर के लिए एक कहानी लिखी थी ‘भंवरे ने खिलाया फूल’। इसमें इरफान के साथ एक्ट भी किया था। इसे तिग्मांशु ने डायरेक्ट किया था। तो हम लोग तो तभी से साथ काम कर रहे थे। उस वक्त तो हम सभी स्ट्रगल कर रहे थे। फिर धीरे-धीरे इरफान को सफलता मिली। हमें हमेशा से पता था कि वो कमाल का एक्टर है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकलकर आया था। जितना अच्छा कलाकार था, उतना ही बेहतरीन इंसान भी था।’
‘पान सिंह तोमर’ के सीन में काफी इम्प्रोवाइज किया
‘उनके उस दौर से लेकर आखिरी वक्त तक मैंने उनके साथ काम किया। पहले ‘हासिल’, फिर ‘पान सिंह तोमर’ और फिर ‘करीब करीब सिंगल’ में भी हमने साथ काम काम किया। ‘पान सिंह तोमर’ में हमारा जो सीन था उसे हमने दो रातों में शूट किया था। तिग्मांशु की स्क्रिप्ट थी, संजय चौहान जी के डायलॉग्स थे लेकिन ऑन द स्पॉट चीजें बनती हैं कई बार।
तिग्मांशु, मैं और इरफान हम सभी थिएटर से आते थे तो उस सीन में हमने काफी चीजें ऑन स्पॉट ही बनाई थीं। मुझे उस सीन को शूट करने में बहुत हंसी आई। एक-दो सिचुएशन तो ऐसी थी कि मैं सीरियस सीन दे रहा था और कैमरा कांप रहा था, क्यों? पता चला कि कैमरामैन को हंसी आ रही है। तो उस सीरियस सीन को फनी तौर पर पेश करते हुए हमने काफी कुछ इम्प्राेवाइज किया था।’
बाबिल के ऊपर प्रेशर है, वो खुद को प्रूव करेगा
‘इरफान के आखिरी वक्त में उससे ज्यादा बात नहीं हो पाई। उसके जाने से सिर्फ हम दोस्तों को ही नहीं, इंडस्ट्री को, निर्देशकों और कई कलाकारों को जो भारी नुकसान हुआ है वो कभी नहीं भर पाएगा। उनके बेटे बाबिल से एक-दो बार मेरी मुलाकात हुई है।
टैलेंटेड बाप का काबिल बेटा है वो। बहुत मुश्किल होता होगा उसके लिए यहां काम करना क्योंकि न चाहते हुए भी उसको हर कोई उसके पिता से कम्पेयर कर रहा है। उसको खुद को प्रूव करना होगा और यकीनन वो करेगा। भगवान से यही दुआ है कि वो खूब सफलता हासिल करे।’
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मुझे तो जानते भी नहीं थे फिर भी खुद आकर हाथ मिलाया- बालेंद्र बालू
‘फिल्म ‘पीकू’ के सेट पर मेरी उनसे जीवन में पहली बार मुलाकात हुई थी। वो सेट पर फिल्म शूटिंग शुरू होने के तीसरे दिन आए थे। हम सेट पर बैठे थे और वो कॉस्ट्यूम ट्रायल के लिए आए थे। उन्होंने आकर खुद से सभी से हाथ मिलाया। मुझे तो वो जानते भी नहीं थे फिर भी खुद आकर मुझसे मिले।
थोड़ा बहुत वक्त हो जाने के बाद उन्होंने शूजित दा (पीकू के डायरेक्टर) से पूछा कि वो बुधन का किरदार कौन कर रहा है ? तब फिर शूजित दा ने मुझे उनसे मिलवाया। मैंने बताया कि मैं भोपाल से हूं तो आलोक चटर्जी की बात निकल आई। बोले- ‘वो तो मेरे थिएटर के वक्त का दोस्त है, बढ़िया एक्टर है.. पता नहीं क्यों मुंबई नहीं आता।’
मेरे साथ एक सीन था जिसे हमने इम्प्रोवाइज किया
‘फिर उनके साथ मेरा सबसे ज्यादा वक्त जर्नी सीन के दौरान बीता। हमने वो सीन एक हफ्ते तक अहमदाबाद के पास शूट किया था। सुबह 4 बजे हम लोग निकल जाते थे और 6 बजे शूट शुरू होता था। उस सीन में इरफान, बच्चन साहब और दीपिका जी ने काफी इम्प्रोवाइज किया था। वहीं मेरा और इरफान का एक ही सीन था जो फिल्म का साइलेंट सीन था। जब मैं गाड़ी में आगे की सीट पर जाकर बैठ जाता हूं और इरफान गाड़ी नहीं चलाते.. फिर दीपिका जी आगे आकर मेरी जगह बैठती हैं। उस सीन को भी हमने इम्प्रोवाइज किया था।’
फैंस को देखकर खुद ही बुला लेते थे
‘इरफान सेट पर पूरे वक्त अपने काम पर ध्यान देते थे। काफी अनुशासित रहते थे। वो अपने कैरेक्टर में डूबे रहते थे। उसी के बारे में सोचना.. सीन किस तरह करना है यही सब चलता था उनके मन में। उनसे ज्यादा बच्चन साहब सेट पर मस्ती करते थे।
बाकी अपने फैंस का इतना ख्याल रखते थे कि सेट पर जो भी आता सभी के साथ फोटो खिंचवाते थे। वो दूर से ही भांप लेते थे कि कोई फोटो खिंचवाना चाह रहा है पर शर्मा रहा है तो उसे खुद ही बुला लेते थे- फोटो खिंचवानी है.. आ जाओ.. आ जाओ…
मैं हैरान होता था हर दिन सेट पर क्योंकि महसूस ही नहीं होता था कि हम एक्टिंग कर रहे है। इतना ज्यादा कम्फर्ट जोन था इरफान जी और बाकी सभी कलाकारों के साथ कि मजाक-मजाक में काम हो जाया करता था और इसी तरह पूरी फिल्म भी शूट हो गई।
बाकी, इरफान के बारे में क्या ही कहना.. वो अपने आप में इंस्टीट्यूशन थे। उनके कुछ किरदार भी अगर नए कलाकार देख लें तो उनके लिए बहुत बड़ी लर्निंग है।’