RBI: एमपीसी के सदस्य ने बेहतर नीति निर्माण के लिए दो मुद्रास्फीति दरों की वकालत की, जानें उनकी राय के बारे में

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य नागेश कुमार ने सुझाव दिया है कि दो मुद्रास्फीति दरें होनी चाहिए- एक जिसमें खाद्य कीमतें शामिल हों और दूसरी जिसमें खाद्य कीमतें शामिल न हों- ताकि नीति निर्माण के लिए प्रासंगिक दरों को ध्यान में रखा जा सके। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में खाद्य मुद्रास्फीति को दर निर्धारण से बाहर रखने की वकालत करते हुए कहा था कि मौद्रिक नीति का खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ता है, जो आपूर्ति पक्ष के दबावों से तय होती हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में बेंचमार्क ब्याज दरें निर्धारित करते समय खाद्य मुद्रास्फीति को शामिल न करने के सुझाव पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा, “मुझे लगता है कि इस बात पर एक स्वस्थ बहस चल रही है कि लक्ष्य क्या होना चाहिए।” उन्होंने कहा, “चाहे वह समग्र मुद्रास्फीति दर हो या खाद्य उत्पादों से अलग मुद्रास्फीति दर, आप जानते हैं, ये मौसमी मांग, आपूर्ति असंतुलन से बहुत गंभीर रूप से प्रभावित होती है।” समग्र उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में खाद्यान्न का भार, जो 46 प्रतिशत है, 2011-12 में निर्धारित किया गया था, इसलिए इस पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि हमारे पास दो मुद्रास्फीति दरें होनी चाहिए, एक जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति शामिल हो और एक जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति न हो… इसलिए प्रासंगिक दर पर विचार किया जा सकता है, तथा यह तय किया जा सकता है कि कौन सा विशेष नीतिगत मापदंड क्या है।”
भारत ने 2016 में मुद्रास्फीति से निपटने का ढांचा पेश किया था, जिसके तहत भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को खुदरा मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर रखने का निर्देश दिया गया है, जिसमें दोनों तरफ 2 प्रतिशत का मार्जिन रह सकता है। बेंचमार्क नीतिगत दरें आरबीआई द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में उतार-चढ़ाव के आधार पर द्विमासिक आधार पर तय की जाती हैं, जिसमें खाद्य, ईंधन, विनिर्मित वस्तुएं और चुनिंदा सेवाएं शामिल हैं। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा कि दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर चार महीने के निचले स्तर 5.22 प्रतिशत पर आ गई।
कुमार ने कहा, “इस 5.2 प्रतिशत की वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण है, ऐसा सब्जियों की कीमतों में मौसमी असंतुलन के कारण भी है…और जब मंडियों में अधिक आपूर्ति आएगी, तो यह अपने आप ठीक हो जाएगा, और हम देखेंगे कि मुद्रास्फीति पर और अधिक अंकुश लगेगा।” सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2024-25 में चार साल के निचले स्तर 6.4 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है, जिसका मुख्य कारण विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का खराब प्रदर्शन है।
जुलाई-सितंबर की अवधि में आर्थिक वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई। पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में यह 6.7 प्रतिशत थी। यह पूछे जाने पर कि भारत में निजी निवेश क्यों धीमा है, कुमार ने कहा कि निजी निवेश अब तक की तुलना में बेहतर होना चाहिए। उन्होंने कहा, “और मेरा मानना है कि चुनाव की अनिश्चितताएं समाप्त होने के बाद, केंद्र में एक स्थिर सरकार होगी और एनडीए 3.0 सुधारों की गति को आगे बढ़ाएगा, इससे और अधिक निजी निवेश आएगा।” उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है। उन्होंने कहा, “हमें भारत की कहानी को और अधिक प्रचारित करने की जरूरत है, ताकि देश में पहले से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आ सके।”
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