Chirag Paswan : नीतीश कुमार सरकार में चिराग पासवान अपना डिप्टी सीएम रखेंगे? पासवान परिवार से भी दावेदार!

बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में हुए मतदान के बाद 14 नवंबर को परिणाम आया, जिसमें 202 सीटों पर प्रचंड जीत के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का आना तय हो गया। ‘अमर उजाला’ ने अधिसूचना से पहले या बाद, कभी भी मुख्यमंत्री के चेहरे पर सस्पेंस नहीं दिखाया; क्योंकि एनडीए के अंदर कोई बहस नहीं थी। पिछली बार अपने से करीब आधी सीटें लाने वाले जनता दल यूनाईटेड को सीएम की कुर्सी देने वाली भाजपा इस बार भी उनके लिए स्पष्ट थी। प्रक्रिया वही होनी थी कि विधायक दल चुनेगा। आज वह प्रक्रिया हुई। लेकिन, इस बीच कभी नीतीश का विकल्प लाने, चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाने या डिप्टी सीएम बनाने तक की अफवाहें मीडिया और सोशल मीडिया पर चली। अब नई सरकार के गठन से पहले यह बात चल निकली है कि चिराग पासवान अपने परिवार से बिहार का उप मुख्यमंत्री देना चाह रहे। क्या यह संभव है? और, यह संभव हुआ तो क्या चिराग पासवान का निर्णय सही होगा? दिवंगत राम विलास पासवान के परिवार का इतिहास-वर्तमान क्या कहता है?

सबसे पहले जानें, इस बार पासवान के परिवार से कौन था मैदान में?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दिवंगत राम विलास पासवान के परिवार से सिर्फ एक युवक ने लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था- सीमांत मृणाल। सारण जिले में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट गड़खा में सीमांत मृणाल को उतारा गया था, लेकिन वह 12804 मतों से राष्ट्रीय जनता दल प्रत्याशी के सामने हार गए। सीमांत मृणाल दिवंगत राम विलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी से हुई बेटी उषा के बेटे हैं। पिता के निधन के बाद चिराग ने अपनी ‘बड़ी मां’ को भी संभाला और पहले के मुकाबले उनके परिवारजनों से भी रिश्ता सुधारा। इसी सिलसिले में सीमांत के पिता धनंजय पासवान मृणाल को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। मतलब, चिराग पासवान ने राज्य चुनाव से पहले ही अपने रिश्ते को यहां मजबूत कर लिया था।
बड़े दावेदार राजू तिवारी, लेकिन चर्चा में परिवार से यह नाम
लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी इस बार चुनाव में उतरे और जीते भी हैं। यह कहा जा रहा है कि 19 विधायकों वाली चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) उप मुख्यमंत्री की कुर्सी चाह रही है। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान को अगर बिहार में आगे राजनीति करनी है तो वह अपने किसी भी विधायक के लिए उप मुख्यमंत्री जैसा पद नहीं मांगेंगे। उप मुख्यमंत्री भी बिहार में सामान्य मंत्री जैसी शक्ति वाला ही पद होता है, लेकिन वह मुख्यमंत्री के डिप्टी के रूप में महत्वपूर्ण हो जाता है।
चाणक्य इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि “चिराग पासवान ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के जरिए राज्य में पहचान बनाने की कोशिश की और पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में ताकत भी दिखा चुके थे। केंद्र में अच्छे मंत्रालय की शक्ति रहने के कारण वह बिहार की राजनीति में फिलहाल नहीं आ रहे, लेकिन पिता दिवंगत राम विलास पासवान की तरह उनकी भी अंदरूनी इच्छा यहां की बागडोर संभालने की जरूरी होगी। ऐसे में, आगे का रास्ता बंद करने के लिए वह पार्टी से किसी को उप मुख्यमंत्री जैसा ओहदा दिलाएंगे, ऐसा लगता नहीं। परिवार से सांसद जीजा अरुण भारती का नाम भी सामने आ रहा है तो वहां भी यही फॉर्मूला लगना चाहिए। एक तो सांसद को विधायक बनाना और फिर उप मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाना, दोनों ही राजनीतिक निर्णय के हिसाब से उचित नहीं दिखता है।”
दिवंगत पिता ने बढ़ाया था कुनबे को, बड़ी सीख दी चाचा पारस ने
चिराग पासवान काफी हद तक अपने पिता के रास्ते चलना चाह रहे हैं। इसलिए, सौतेली बहन के बेटे सीमांत मृणाल के चुनाव में उतारा और इससे पहले सहोदर बहन निशा पासवान के पति अरुण भारती को सांसद बनाने में कामयाब रहे। अब अरुण भारती के डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा चल तो निकली है, लेकिन दिवंगत पिता राम विलास पासवान के निधन के बाद मिली सीख को देखते हुए यह मानना मुश्किल हो रहा है कि चिराग पासवान अपनी कमान किसी अन्य के हाथ में देंगे। दिवंगत राम विलास पासवान अपने परिवार के पहले राजनीतिज्ञ थे। खगड़िया जिले में जमीन से शुरुआत की थी। तब गृह क्षेत्र अलौली के निकटवर्ती बखरी इलाके से उन्होंने अपनी पहचान बेगूसराय-खगड़िया जिले तक बढ़ाई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। खुद बड़ा बनने के बाद उन्होंने अपने भाइयों रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस को आगे बढ़ाया। लेकिन, राम विलास पासवान के निधन के तुरंत बाद जो भी हुआ- वह चिराग पासवान के लिए सबक ही रह गया।
राम विलास का बनाया बाकी परिवार बर्बाद, बमुश्किल बेटे के दिन लौटे
दिवंगत राम विलास पासवान ने अपनी पहली पत्नी राजकुमारी देवी (विवाह- 1960), दूसरी पत्नी रीना पासवान (विवाह- 1983) या इन दोनों से हुए चारों बच्चों से ज्यादा ध्यान अपने भाइयों पर दिया था। छोटे भाइयों पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान को वह हमेशा साथ लेकर चलते थे। पारस को मैनेजर और रामचंद्र को बेटा कहते थे। कई बार सांसद रहे रामचंद्र पासवान का निधन बड़े भाई राम विलास पासवान के सामने ही हो गया था।
राम विलास पासवान के बाद वाले भाई पशुपति कुमार पारस बिहार में विधायक, राज्य सरकार में मंत्री भी रहे। फिर बड़े भाई की छोड़ी सीट हाजीपुर से सांसद बनकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बने। राम विलास पासवान के निधन से पहले ही चिराग की ताकत देख दोनों में अलगाव शुरू हो गया। इस अलगाव के बीच 2020 का बिहार चुनाव हुआ, जिसमें चिराग ने बिहार में सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के सामने अपने प्रत्याशी उतार दिए। जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी बनीं कि चिराग की एनडीए में एंट्री संभव नहीं थी। पशुपति कुमार पारस केंद्रीय मंत्री बनाए गए। वक्त बदला। इधर बिहार में चिराग पासवान की स्थिति मजबूत हुई।
चिराग की केंद्र में भी स्थिति मजबूत हुई और लोकसभा चुनाव 2024 के पहले यह सब देख चाचा पशुपति कुमार पारस ने अचानक केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ने से पहले पारस ने दिवंगत राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को दो फाड़ करा एक गुट (लोजपा- राष्ट्रीय) संभाल लिया था। चिराग पासवान 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्रीय मंत्री बन गए। अपने बहनोई अरुण भारती को भी सांसद बनाने में कामयाब रहे। दूसरी तरफ पशुपति पारस और दिवंगत रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस पासवान पूर्व सांसद बन गए। लोकसभा चुनाव के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। दोनों ही बार लोजपा- राष्ट्रीय को कुछ हासिल नहीं हुआ। इस बार भी चुनाव में प्रत्याशी देना बेकार गया।
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