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Cancer: अब सांसें बताएगीं आपको कैंसर तो नहीं? दुनिया के पहले ब्रीदिंग टेस्ट से लाखों लोगों की बचेगी जान|

Cancer: अब सांसें बताएगीं आपको कैंसर तो नहीं? दुनिया के पहले ब्रीदिंग टेस्ट से लाखों लोगों की बचेगी जान|
Cancer: अब सांसें बताएगीं आपको कैंसर तो नहीं? दुनिया के पहले ब्रीदिंग टेस्ट से लाखों लोगों की बचेगी जान|
  • पैंक्रियाटिक कैंसर बीमारी ने एलन रिकमैन, स्टीव जॉब्स और एरीथा फ्रैंकलिन जैसी मशहूर हस्तियों की जान ले ली, आमतौर पर काफी देर से लोगों में इसकी पहचान हो पाती है।
  • अग्नाशय कैंसर के बढ़ते जोखिमों को देखते हुए समय रहते इसका पता लगाने के लिए दुनिया का पहला सबसे सस्ता श्वसन परीक्षण विकसित किया है, जो हजारों लोगों की जान बचा सकता है।
Cancer: अब सांसें बताएगीं आपको कैंसर तो नहीं? दुनिया के पहले ब्रीदिंग टेस्ट से लाखों लोगों की बचेगी जान|

Pancreatic Cancer: पिछले दो दशकों में जिन बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े हैं, जिनके कारण सबसे ज्यादा लोगों की मौत हो रही है, कैंसर उनमें शीर्ष पर है। साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक इस साल लगभग 2 करोड़ नए मामले सामने आए और 97 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। नए मामलों के हिसाब से फेफड़े, स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर सबसे आम हैं। इतना ही नहीं फेफड़ों का कैंसर इस रोग से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण भी है। अनुमान बताते हैं कि साल 2050 तक नए मामलों की वार्षिक संख्या बढ़कर 3.5 करोड़ तक पहुंच सकती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, खराब लाइफस्टाइल, बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक, खानपान में गड़बड़ी और मोटापे ने कैंसर के जोखिमों को काफी बढ़ा दिया है। यह सच है कि दुनियाभर में कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इससे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अब यह सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रहा, 20 से कम आयु के लोग यहां तक कि बच्चे भी इस रोग का शिकार होते जा रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी  के हालिया आंकड़ों के अनुसार, हर साल करीब 1 करोड़ लोगों की मौत कैंसर के कारण हो सकती है। 

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भारतीय आबादी में बढ़ता कैंसर का खतरा

भारत जैसे देशों में तंबाकू, शराब और अस्वास्थ्यकर खानपान के कारण ओरल और फेफड़ों के कैंसर तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर अब सबसे आम कैंसर बन चुका है, हर 8 में से 1 महिला इसका शिकार पाई जा रही है। इसके अलावा हाल के अध्ययनों में वैज्ञानिकों की पैंक्रियाटिक (अग्नाशय) कैंसर के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जताई है।

यह एक ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण बेहद हल्के या अस्पष्ट होते हैं। इस कैंसर के कारण पेट दर्द, पाचन में गड़बड़ी या थकान जैसी समस्याएं अधिक होती हैं जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। जब तक इसका पता चलता है, यह अक्सर लेट स्टेज में पहुंच चुका होता है।

 

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अग्नाशय कैंसर के बढ़ते मामले

डॉक्टरों का कहना है कि असंतुलित आहार, प्रोसेस्ड फूड्स, मोटापा, धूम्रपान, शराब और तनावपूर्ण जीवनशैली ने इस कैंसर के खतरे को बढ़ा दिया है। अगर लोग समय पर स्क्रीनिंग कराएं, नियमित व्यायाम करें और हेल्दी डाइट लें, तो इस कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

अग्नाशय कैंसर के बढ़ते जोखिमों को देखते हुए समय रहते इसका पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला सबसे सस्ता श्वसन परीक्षण विकसित किया है, जो हजारों लोगों की जान बचा सकता है। वैज्ञानिक इसे 50 वर्षों में सबसे बड़ी सफलता मान रहे हैं।

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पैंक्रियाटिक कैंसर का पता लगाने वाला टेस्ट

पैंक्रियाटिक कैंसर बीमारी ने एलन रिकमैन, स्टीव जॉब्स और एरीथा फ्रैंकलिन जैसी मशहूर हस्तियों की जान ले ली, आमतौर पर काफी देर से लोगों में इसकी पहचान हो पाती है। जिन लोगों में इसका निदान होता है उनमें से केवल सात प्रतिशत ही पांच साल या उससे अधिक समय तक जीवित रह पाते हैं।

लेकिन, अब विशेषज्ञों का कहना है कि एक सस्ते श्वास परीक्षण से हर साल हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती है। ये टेस्ट  ट्यूमर द्वारा निर्मित अणुओं का पता लगाने में मदद करता है।

इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड में 40 केंद्रों पर 6,000 मरीजों पर इसका परीक्षण किया जाना है। अगर यह कारगर साबित होता है, तो उम्मीद है कि इसे पांच साल के भीतर सभी सामान्य चिकित्सा और सर्जरी केंद्रों में लागू किया जा सकेगा, जिसका अर्थ है कि मरीजो का निदान जल्दी हो सकेगा और उपचार ज्यादा प्रभावी हो सकेगा।

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कैसे काम करता है ये टेस्ट?

अब तक 700 से अधिक मरीजों पर दो साल तक चले एक अध्ययन में इसका परीक्षण किया गया है जिसके परिणाम आशाजनक रहे थे।

वैज्ञानिक बताते हैं, यह परीक्षण सांस में मौजूद ‘वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों’ के संयोजन का पता लगाता है। इनमें से हजारों यौगिक रक्तप्रवाह में घूमते हैं और जब रक्त फेफड़ों में पहुंचता है तो छनकर सांस के साथ बाहर निकल जाते हैं। दावा किया जा रहा है कि अग्नाशय कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में भी इससे मदद मिल सकती है।

अभी तक जिन लोगों में अग्नाशय कैंसर का संदेह होता है उन्हें स्कैन के लिए रेफर किया जाता है। इंपीरियल कॉलेज लंदन में सर्जरी और कैंसर विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर जॉर्ज हैना कहते हैं, ‘यदि श्वास परीक्षण अध्ययन मान्य किया जा सकता है, तो इसमें अग्नाशय कैंसर के रोगियों की समय रहते पहचान करने में काफी मदद मिलने की संभावना है।

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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Author: ILMA NEWSINDIA

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