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यूपी में बीजेपी की हार के बीच योगी फैक्टर की क्यों हो रही चर्चा?

उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को मिली बढ़त ने बीजेपी को आत्ममंथन करने का मौका दिया है. बीजेपी को मिली हार का कारण केवल एक पहलू नहीं हो सकता है. किसी पर हार का ठीकरा फोड़ने से पहले खुद का विश्वेषण करना होगा.

यूपी में लोकसभा चुनावों में बीजेपी से समाजवादी पार्टी आगे निकल चुकी है. बीजेपी को 33 सीट मिली है तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर 43 सीट जीत ली हैं.जाहिर है कि बीजेपी की हार के कारण ढूंढें जा रहे हैं.खिलेश यादव का  मुस्लिम-यादव , पिछड़ा दलित समीकरण काम कर गया. साथ में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी को उसके कोर वोटर्स का भी वोट नहीं मिला. जिसमें सबसे खास रहे राजपूत वोटर्स. कुछ लोगों का कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भविष्यवाणी वाला बयान काम कर गया. केजरीवाल ने ऐन चुनावों के बीच कहा था कि बीजेपी फिर आई तो योगी को मुख्यमंत्री पद से हटा देगी, ठीक उसी तरह जिस तरह मध्यप्रदेश से शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया.इस तरह राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक में बीजेपी को हुए नुकसान में राजपूत वोटर्स की नाराजगी का कारण बताया जा रहा है. कुछ ऐसे ही कारणों से सोशल मीडिया में अचानक ऐसे चुटकुले और मीम्स दिखाई देने लगे हैं जिन्हें देखकर लगता है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इन चुनावों में बीजेपी की हार के लिए जिम्मेदार बन गए हैं. इसमें चुनाव हारने वाली साध्‍वी निरंजन ज्‍योति और बहुत कम वोटों से जीतने वाले साक्षी महाराज के बयानों का भी सहारा लिया जा रहा है. जिन्‍होंने यूपी के चुनाव नतीजों को लेकर भितरघात का आरोप ह

1-बीजेपी में योगी की अहमियत 

आज की भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बीजेपी में अहमियत को कम नहीं किया जा सकता. उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में बीजेपी के चुनावी कैंपेन में उनकी डिमांड शायद पीएम नरेंद्र मोदी के बाद सबसे अधिक रहती है. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी ने अगर 206 रैलियां और सभाएं की हैं तो योगी आदित्यनाथ ने 204 रैलियां और सभाएं कीं . कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और पार्टी के प्रदेश अध्यक्षों ने चिट्ठी लिखकर योगी आदित्यनाथ की सभा की डिमांड की थी. पार्टी के पोस्टर बॉय बन चुके हिंदू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता और उनका पार्टी के प्रति समर्थन किसी से भी कम नहीं है.उनकी कार्यशैली को देश को कई राज्यों के लिए स्वयं पीएम मोदी ने उनकी तारीफ की थी.

2-यूपी में योगी की अहमियत 

उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में कभी भारतीय जनता पार्टी के पैरलल योगी आदित्यनाथ की पार्टी हिंदू युवा वाहिनी काम करती रही है. जिसे अब भंग किया जा चुका है. 2 दशक पहले तक योगी अपना चुनाव घोड़ा मय सवार वाले चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ते थे. योगी से पूर्व के गोरखनाथ मठ महंत अवैद्यनाथ संसद का चुनाव लड़ते थे और योगी विधायकी का.गोरखपुर के आस पास के क्षेत्रों में बीजेपी अगर मठ के पसंद के प्रत्य़ाशी नहीं खड़ी करती तो उसे हिंदू युवा वाहिनी के मजबूत प्रत्याशी का सामना करना होता था. मठ की ओर ऐसी व्यवस्था कर दी जाती थी कि गोरखपुर में एक नारा मशहूर हो गया कि गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना है.

योगी के विरोधी उनकी इसी कार्यशैली की चर्चा आज कर रहे हैं. इसके लिए गोरखपुर में 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव और 2023 में हुए घोसी उपचुनाव की चर्चा कररहे हैं. दरअसल 2017 में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनने के बाद अपनी संसद की सीट छोड़नी पड़ी थी. गोरखपुर सीट पर उपचुनाव हुए और योगी की गढ़ रही सीट उनके सीएम बनने के बाद बीजेपी हार जाती है. .जाहिर है सीएम योगी पर सवाल उठने ही थे. सीएम के विरोधियों ने कहा कि योगी के पसंद के व्यक्ति को टिकट न मिलने के चलते उन्होंने जानबूझकर चुनाव में मन से प्रचार नहीं किया.इसी तरह घोसी उपचुनाव में हार पर कहा गया है कि वो दारा सिंह चौहान को विधायक बनाने की राह में वो ऱोड़ा बन गए क्योंकि चौहान को बीजेपी में लाने के पक्ष मेवो नहीं थे. कहने का मतलब यही है कि योगी आदित्यनाथ को जब छेड़ा जाता है तो वो रिएक्ट जरूर करते हैं.

3-योगी समर्थक क्यों नाराज हैं

यूपी में योगी समर्थकों के नाराज होने की पर्याप्त वजहें हैं. समर्थकों का कहना है कि योगी के साथ बीजेपी में सौतेला व्यवहार किया जाता है. जिस तरह से योगी पार्टी के लिए जी जान लगा देते हैं  उस तरह चुनाव कैंपेन को लेकर फुल फ्लेज्ड पावर नहीं दी जाती है. यहां तक कि उनके समर्थकों को टिकट भी नहीं मिल पाता है. योगी समर्थकों की नाराजगी इस बात को लेकर रहती है कि योगी को अपने पसंद के अधिकारियों तक की नियुक्ति के पावर नहीं मिलता है हालांकि सीएम योगी ने कभी भी इस तरह का व्यवहार सार्वजनिक जीवन में नहीं दिखाया जिससे यह कहा जा सके कि वो अपने केंद्रीय नेतृत्व से इस मामले में नाराज हैं.उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कई ऐसे नेता हैं जो योगी को महत्व नहीं देते रहे हैं. महिला खिलाड़ियों से दुर्व्यवहार के आरोपी नेता ब्रजभूषण शरण सिंह सीधे बुलडोजर की कार्रवाई के बहाने योगी आदित्यनाथ की आलोचना करते रहते हैं. यह सब बातें ऐसी रही हैं जिनके कारण राजपूत समाज में यह बात अंदर तक फैल गई कि मोदी सरकार के मजबूत होने के बाद योगी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा.

4-योगी और राजपूत वोटरों की नाराजगी का कनेक्शन हवा हवाई है

हालांकि उत्तर प्रदेश की हार को राजपूतों की नाराजगी से जोड़ने वाले कितने नादान हैं इसे उत्तर प्रदेश के रिजल्ट से समझ सकते हैं. रायबरेली में राहुल गांधी करीब साढ़े चार लाख वोटों से चुनाव जीते हैं. इसके मुकाबले राजनाथ सिंह की जीत कितनी मामूली है. क्या राजपूतों ने राजनाथ सिंह को भी वोट नहीं दिया. अगर राजपूतों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया तो फिर गाजियाबाद में बीजेपी कैंडिडेट अतुल गर्ग साढ़े तीन लाख वोटों से कैसे जीत गए. नोएडा में भी महेश शर्मा बीजेपी से इससे भी बड़ी मार्जिन से जीते हैं. ये दोनों सीटें मोस्ट राजपूत डॉमिनेटेड हैं. बुलंदशहर में राजपूत निर्णायक संख्या हैं यहां भी बीजेपी जीती है.

अलीगढ़ में भाजपा को बहुत नजदीकी अंतर से जीत मिली वो इसलिए संभव हो सका क्योंकि राजपूत बाहुल्य बरौली विधानसभा से भाजपा को 35 हजार की लीड मिली. डुमरियागंज में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हरिशंकर तिवारी के पुत्र कुशल तिवारी का मुकाबला बीजेपी के राजपूत कैंडिडेट जगदंबिका पाल से था.जगदंबिका पाल को भी जीत मिली है. दरअसल बीजेपी को मंथन करना होगा कि उसे क्यों वोट नहीं मिले. नहीं तो पीएम मोदी केवल डेढ़ लाख वोट से नहीं जीतते ? राजपूत वोटों के लिए योगी आदित्यनाथ पर ठीकरा फोड़ बीजेपी अपना ही नुकसान करेगी. अयोध्या से लल्लू सिंह राजपूत प्रत्याशी थे और रामलला को भी राजपूत अपना पूर्वज मानते हैं . ऐसा कैसे हो सकता है कि राजपूतों ने बीजेपी को वोट न दिया हो.

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