राहुल बनर्जी ने 1980 में आईआईटी की पढ़ाई की। आईआईटी खड़कपुर में पढ़ाई के दौरान ही वह गांवों में सेवाकार्यों के लिए जाते थे। इस दौरान उन्हें लगा कि आदिवासियों और ग्रामीणों की हालत बहुत खराब है और इनके हकों की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। वह चौथे साल में ही आईआईटी छोड़ रहे थे लेकिन परिवार के दबाव में उन्होंने डिग्री पूरी की। इसके बाद वे आदिवासी क्षेत्रों में सेवा कार्य करने लगे। उन्होंने झाबुआ आलीराजपुर में लंबे समय काम किया और आदिवासियों की आवाज उठाने के लिए आंदोलन करने लगे। 2005 में देश में आदिवासी वन अधिकार कानून पारित हुआ जिसमें राहुल बनर्जी ने अग्रणी भूमिका निभाई। इस कानून के बाद आदिवासियों को जंगल पर और अपने खेतों पर कानूनी अधिकार मिला। पूरे जंगल को बचाने का अधिकार भी मिला। राहुल बताते हैं कि इस कानून की वजह से ही आलीराजपुर में हम 15 हजार हेक्टेयर जंगल को बचा पाए।
प्राचीन पद्धतियों को जिंदा रखने का प्रयास, आदिवासी बच्चों के लिए बनाया छात्रावास
राहुल अभी झाबुआ आलीराजपुर में काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि आदिवासी क्षेत्रों के सारे परिवार छोटे से मोहल्ले में श्रमदान करते हैं। वे एक दिन किसी दूसरे के खेत में काम करते हैं। इससे सामाजिक सरोकार बनता है। राहुल इन प्राचीन पद्धतियों को जिंदा रखने के कार्य कर रहे हैं। इसके साथ उनका एक आश्रम है जहां पर बच्चों को शिक्षा, मूल्य और कृषि आदि में पारंगत किया जाता है।
खेती, जंगल खत्म कर किसानों को मजदूर बना रही सरकारें
आदिवासी आंदोलन क्यों बढ़ते जा रहे हैं, इस प्रश्न पर राहुल कहते हैं कि जहां पर आदिवासी रहते हैं वहीं पर नदियां, जंगल और खनिज हैं। उद्योगों को यही सब चीजें चाहिए। वह इन्हें छीन लेना चाहते हैं। हंसदेव के घने जंगलों को काटकर अब सरकार कोयला निकालेगी। इससे बहुत कार्बन उत्सर्जन होगा। आज यह नीतियां दुनिया छोड़ चुकी है लेकिन हम नहीं सुधर रहे। गांव खाली हो रहे हैं और वह खेती छोड़कर सस्ते मजदूर बन रहे हैं।
जैविक खेती पर लौटेगी दुनिया
राहुल बनर्जी अब जैविक खेती पर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि हम पैसा कमा रहे हैं और जहर खा रहे हैं। खेती को बर्बाद करते हमने कारखाने और इमारतें बनाई और अब हमें खाने को भी अच्छा भोजन नहीं मिल रहा। वे जैविक खेती करते हैं और इसके प्रचार प्रसार के लिए काम करते हैं।
आदिवासी आंदोलन में मिलीं सुभद्रा, जीवन संगिनी बनाया
पढ़ाई के बाद राहुल आदिवासी आंदोलनों में समर्पित हो गए, इसी दौरान उन्हें सुभद्रा मिलीं। वे आदिवासी हैं और आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करती हैं। उस समय वे धार में काम कर रहीं थी और नर्मदा आंदोलन चल रहा था। वहां से दोनों का परिचय हुआ, दोनों ने साथ में कई आंदोलन में काम किया और फिर जीवनसाथी बन गए। अब दोनों जैविक खेती पर काम कर रहे हैं।