किसी शव को कब्र खुदवा कर निकाल लेना तब बड़ी बात होती थी। वह भी, जब कांड का कोई सूचक नहीं हो। आईपीएस के रूप में किशोर कुणाल ने बॉबी हत्याकांड की जांच में जो किया, वह आज भी मिसाल है।
सोशल मीडिया नहीं था। टेलीविजन का जमाना भी नहीं। फिर भी बिहार में तब कई हत्याएं बहुत ज्यादा चर्चित हुईं। ऐसा ही एक मामला था- बॉबी हत्याकांड। ऐसा केस, जिसके बारे में किसी थाने में कोई प्राथमिक सूचना भी दर्ज नहीं की गई। लेकिन, अखबारों में जब महिला की संदेहास्पद मौत की खबर आई तो आईपीएस किशोर कुणाल ने शव को कब्र से निकलवा कर जांच शुरू कर दी। ऐसी जांच कि उसकी आंच राजनीतिक गलियारे तक पहुंच गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी जानना चाहा। आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी किताब में ऐसे कांडों का जिक्र किया था।
गड़े हुए मुर्दे को भी को निकाला था
अपनी किताब ‘दमन तक्षकों का’ में आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि किस तरह उन्होंने बिहार की चर्चित बॉबी हत्याकांड की जांच की। इसके बाद इस जांच को सीबीआई को सौंपा। इतना ही नहीं इस केस को लेकर उनकी मुख्यमंत्री से जो बातचीत हुई उसका भी जिक्र किया। आचार्य ने लिखा कि बॉबी हत्याकांड में गड़े हुए मुर्दे को भी निकालकर जांच किया गया। 15 दिनों तक कोई सुराग नहीं मिला। इसके बाद वह थक-हार कर महावीर मंदिर, पटना में आकर बैठ गए। भगवान का आशीष मिला और अगले तीन दिन में ही इस घटना में सफलता मिल गई।
सीएम से कहा- आपका हाथ जल जाएगा: आचार्य ने यह भी लिखा था कि बॉबी हत्याकांड में कई सफेदपोशों को डर था कि उनका चरित्र उजागर हो जाएगा। इसलिए करीब 43 विधायक और दो मंत्रियों ने मिलकर इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी। मेरे ऊपर इस केस को लेकर काफी दबाव डाला गया लेकिन मैं झुका नहीं। किताब में आचार्य ने लिखा था कि मैंने तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा से कहा था कि सर आपकी छवि जनता के बीच बेदाग है। जनता के आपका व्यक्ति अच्छा है। इस मामले में हाथ डालेंगे तो हाथ भी जल जाएगा।
सात मई 1983 को हुई थी बॉबी की हत्या:
सात मई 1983 की रात बॉबी उर्फ श्रेतनिशा त्रिवेदी की हत्या कर दी गई थी। वह तत्कालीन उपसभापति राजेश्वरी सरोज दास की दत्तक पुत्री थी। राजेश्वरी सरोज दास ईसाई थीं, इसलिए बॉबी को दफनाया गया था। आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि बॉबी की सुंदरता से हर कोई प्रभावित था। राज कपूर की सुपरहिट फिल्म बॉबी की नायिका के नाम पर ही श्वेतनिशा का नाम बॉबी रख दिया गया था। बॉबी को विधानसभा में नौकरी दी गई। उनकी मां राजेश्वरी दास ने बताया था कि बॉबी सात मई की शाम घर से निकली और देर रात वापस आई। कुछ देर बाद उसकी तबीयत बिगड़ी। फौरन उसे पीएमसीएच में भर्ती करवाया गया। इसके बाद उसकी मौत हो गई।
इस घटना के चार घंटे के अंदर उसकी लाश को दफना दिया गया। सबकुछ एकदम चुपचाप हुआ।
सरकार ने सीबीआई से करवाई केस की जांच:
मौत के तीन दिन बाद यह खबर एक अखबार में प्रकाशित हुई तो बिहार ही नहीं पूरे देश में सनसनी फैल गई। उस समय पटना में पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल थे। उन्होंने जांच किया तो कई खुलासे हुए। बॉबी की मौत के बाद दो-अलग अलग रिपोर्ट तैयार किए गए थे। मौत के कारण भी अलग अलग बताए गए। लेकिन, आचार्य किशोर कुणाल यह बात पची नहीं। उन्होंने शव को कब्र से निकलवाया और दोबारा जांच करवाई। इसके बाद बिसरा रिपोर्ट में जो बात सामने आई, उसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। पता चला कि बॉबी की मौत मैलाथियान जहर से हुई थी। इस बाद मर्डर का केस दर्ज हुआ। जांच में यह पता चला कि बॉबी का कई सफेदपोश लोगों से मिलना जुलना था। विधानसभा में नौकरी के दौरान कई विधायकों और मंत्रियों के साथ उसकी अच्छी जान पहचान हो गई थी। आचार्य किशोर कुणाल की जांच बढ़ती गई तो एक से बढ़कर एक खुलासे हुए। कई विधायक और मंत्रियों के नाम सामने आए। विपक्ष ने बॉबी हत्याकांड के आरोपियों की गिरफ्तार की मांग की। आचार्य ने अपनी किताब में लिखा कि इस मामले में उनके वरीय अधिकारी ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे मानो उन्होंने सच का पता लगाकर कोई गुनाह कर दिया। हालांकि कुछ दिन बाद ही सरकार ने दबाव में आकर यह केस सीबीआई को सौंप दिया और सीबीआई ने इसे आत्महत्या का मामला बताकर केस बंद कर दिया। आचार्य हमेशा कहते रहे कि यह हत्या का मामला था। बॉबी को इंसाफ मिलना चाहिए थे।
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