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ट्रंप के ही समर्थकों से क्यों भिड़े एलन मस्क: एक भारतीय कैसे बना विवाद की वजह, किस मुद्दे पर बहस? जानें

यह पूरा विवाद क्या है जिस पर दक्षिणपंथी अतिवादियों से ट्रंप का टकराव शुरू हो गया है? एक भारतवंशी इस पूरे विवाद से कैसे जुड़ा है? भारतीय मूल का यह व्यक्ति कौन है और सरकार के लिए कितना अहम है? इसके अलावा उनके विरोध और समर्थन में कौन-कौन खड़ा है? और अमेरिका की कौन सी मौजूदा नीति है, जिसका अतिवादी दक्षिणपंथियों ने विरोध शुरू कर दिया है? आइये जानते हैं…

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस पहुंचने में अब कुछ ही दिन का समय रह गया है। पर इससे पहले कि ट्रंप राष्ट्रपति पद की शपथ ले पाएं, उनके समर्थक दो धड़ों में बंटते नजर आ रहे हैं। मुद्दा है आव्रजन का। स्थिति यह है कि ट्रंप के सबसे करीबी एलन मस्क तक इस बहस का हिस्सा बन गए हैं। हालांकि, ट्रंप समर्थकों ने उन्हें भी नहीं बख्शा है और अमेरिका में वैध आव्रजन तक को गलत ठहराना शुरू कर दिया है। इनमें एक नाम ट्रंप की तरफ से पहले अमेरिका के अटॉर्नी जनरल नियुक्त किए गए मैट गेट्ज और रिपब्लिकन नेता निक्की हेली का भी है, जिन्होंने श्रीराम कृष्णन की नियुक्ति को लेकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नकारात्मक बयान दिए हैं।

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर यह पूरा विवाद उठा क्यों है? एक भारतवंशी इस पूरे विवाद से कैसे जुड़ा है? भारतीय मूल का यह व्यक्ति कौन है और सरकार के लिए कितना अहम है? इसके अलावा उनके विरोध और समर्थन में कौन-कौन खड़ा है? और अमेरिका की कौन सी मौजूदा नीति है, जिसका अतिवादी दक्षिणपंथियों ने विरोध शुरू कर दिया है? आइये जानते हैं…

विवाद की वजह क्या, इसके केंद्र में कौन?
इस पूरे विवाद के केंद्र में है डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से अपनी आने वाली सरकार के लिए की गई एक नियुक्ति। यह नियुक्ति है भारतवंशी आंत्रप्रेन्योर श्रीराम कृष्णन की, जो कि ट्रंप प्रशासन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े मामलों को देखेंगे और एआई पर ट्रंप के सलाहकार की भूमिका निभाएंगे। उनकी नियुक्ति को लेकर ट्रंप के अतिवादी समर्थकों ने नाराजगी जाहिर की है, वहीं एलन मस्क और विवेक रामास्वामी जैसे अरबपति-उद्योगपतियों ने कृष्णन की नियुक्ति के समर्थन में खुद को ट्रंप के ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ समर्थकों से मोर्चा ले लिया है।

कैसे हुई विवाद की शुरुआत?
श्रीराम कृष्णन की नियुक्ति पर विवाद की शुरुआत हुई एक अतिवादी ट्रंप समर्थक लॉरा लूमर के बयान के बाद। लॉरा लूमर आव्रजन की जबरदस्त विरोधी के तौर पर जानी जाती हैं। फिर चाहे बात अवैध आव्रजन की हो या वैध तरह से अमेरिका में पहुंच रहे लोगों की। लूमर ने कृष्णन की नियुक्ति को परेशान करने वाला करार दिया। उन्होंने कृष्णन के उस रुख को लेकर खासी नाराजगी जाहिर की, जिसके तहत भारतवंशी आंत्रप्रेन्योर ने कौशल रखने वाले योग्य विदेशी कामगारों के लिए वर्क वीजा और ग्रीन कार्ड देने की पैरवी की थी। लूमर ने कहा कि यह ट्रंप की आव्रजन नीतियों के बिल्कुल खिलाफ है, जो कि उनकी राजनीतिक मंच के हमेशा केंद्र में रहा है।

विवाद में मस्क की एंट्री कैसे हुई?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में एलन मस्क ने खुलकर ट्रंप का समर्थन किया। कई मौकों पर अवैध आव्रजन को लेकर वे खुद डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के समर्थन में बयान दे चुके हैं। हालांकि, वे शुरुआत से ही वैध आव्रजन और उच्च-कौशल वाले कामगारों के अमेरिका आने को सही ठहराते रहे हैं। दरअसल, मस्क खुद दक्षिण अफ्रीका में जन्मे हैं और बेहद कम उम्र में छात्र के तौर पर अमेरिकी आव्रजन नीति के तहत ही इस देश पहुंचे थे। उन्होंने कई मौकों पर अपना उदाहरण देते हुए उच्च कौशल वाले लोगों के अमेरिका आने का समर्थन भी किया है और इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और कूटनीतिक ताकत के लिए अहम करार दिया है।

लॉरा लूमर के श्रीराम कृष्णन पर दिए गए बयान के बाद विवाद में एलन मस्क की एंट्री हुई। उन्होंने एक्स पर कई पोस्ट्स किए और भारतवंशी का पक्ष रखा। मस्क ने कहा,

  1. “अमेरिका में बेहतरीन इंजीनियरिंग टैलेंट की स्थायी कमी रही है। सिलिकॉन वैली को यह मौलिक तौर पर सीमित करने वाली वजह है।”
  2. उन्होंने आगे कहा, “क्या आप अमेरिका को जीतते देखना चाहते हो या अमेरिका को हराना चाहते हैं? अगर आप दुनिया के बेहतरीन प्रभावशाली लोगों को दूसरे पक्ष के लिए खेलने देंगे, तो अमेरिका हार जाएगा। बात खत्म।”
  3. मस्क यहीं नहीं रुके। उन्होंने निकोला टेस्ला का उदाहरण देते हुए कहा कि एक अप्रवासी की खोजों की वजह से अमेरिका आज बिजली पैदा करने और इसके इस्तेमाल में अग्रणी है।
  4. टेस्ला, स्पेसएक्स और एक्स जैसी कंपनी के मालिक मस्क ने कहा, “कोई भी, चाहे किसी भी नस्ल या राष्ट्रीयता का हो, अगर वह अमेरिका में जबरदस्त तरह से काम कर के योगदान देता है तो उसे हमेशा मेरी तरफ से सम्मान दिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि अमेरिका स्वतंत्रता और मौकों का देश है और हम इसे ऐसा ही रखने की पुरजोर कोशिश करेंगे। मैं अपने खून की आखिरी बूंद तक इसके लिए लड़ूंगा।

विवेक रामास्वामी ने भी एलन मस्क की बात दोहराई
एलन मस्क के इन तर्कों का अमेरिका में जन्मे भारतीय अप्रवासियों के बेटे विवेक रामास्वामी ने भी समर्थन किया। बता दें कि दोनों ही ट्रंप प्रशासन में डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट एफिशिएंसी (डोजे) का प्रभार संभाल रहे हैं। रामास्वामी ने कहा कि अमेरिका की संस्कृति लंबे समय से उत्कृष्टता को छोड़कर सिर्फ औसत दर्जे को महत्व देती है। ये सब कॉलेज में शुरू नहीं होता। ये तो युवावस्था से ही शुरू हो जाता है।

उन्होंने कहा कि टेक कंपनियां अधिकतर विदेश में जन्मे इंजीनियरों को भर्ती करती हैं, इसलिए नहीं क्यों अमेरिका में बुद्धिमता की कोई कमी है, बल्कि ऐसी संस्कृति की वजह से जिसमें मैथ्स ओलंपियाड चैंपियन के ऊपर प्रॉम क्वीन ज्यादा सेलिब्रेट किया जाता है। उन्होंने कहा कि बिना जबरदस्त प्रतिभा को अमेरिका लाए, देश चीन से पिछड़ सकता है।

ट्रंप समर्थकों ने मस्क-रामास्वामी पर किया पलटवार
हालांकि, एलन मस्क और विवेक रामास्वामी के आव्रजन के समर्थन में दिए इन तर्कों पर मेक अमेरिका ग्रेट अगेन समर्थकों ने जबरदस्त पलटवार किया। लॉरा लूमर ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम का विरोध करते हुए कहा कि अमेरिका के टेक इलीट अपने हित के लिए अमेरिकी आव्रजन नीति को दोबारा लिखने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आप सिर्फ मार-ए-लागो (ट्रंप का घर) में घुसकर अपनी बड़ी सी चेकबुक के जरिए हमारी आव्रजन नीति को फिर नहीं लिख सकते।

लूमर के अलावा ट्रंप समर्थक पॉडकास्टर ब्रेंडन डिले ने रामास्वामी के बयानों पर निशाना साधा और उन पर अमेरिकी संस्कृति को न समझ पाने का आरोप लगाया। डिले ने कहा कि आप अमेरिका की संस्कृति की असल दिक्कत हैं। यहां तक कि रिपब्लिकन पार्टी की नेता और पूर्व गवर्नर निक्की हेली, जो कि ट्रंप की आलोचक रही हैं, ने कहा कि अमेरिकी कामगारों या अमेरिकी संस्कृति के साथ कुछ भी गलत नहीं है और इसे प्राथमिकता देने की जरूरत है। खुद भारतवंशी के तौर पर अमेरिका में पहचान बनाने वाली हेली ने कहा कि हमें अमेरिकियों में निवेश करने की जरूरत है न कि विदेशी कामगारों पर।

ट्रंप के अतिवादी दक्षिणपंथी समर्थकों ने इस मुद्दे के बीच ही भारतीय-अमेरिकियों के खिलाफ बयानबाजी भी की है। कई लोगों ने आरोप लगाया है कि भारतीयों को मिलने वाले एच-1बी वीजा की वजह से अमेरिका में रहने वालों की नौकरियों पर खतरा पैदा हो रहा है। इस पर शनिवार को बहस तब और बढ़ गई, जब एलन मस्क ने ट्रंप के कुछ समर्थकों को घृणित बेवकूफ करार दे दिया। कुछ लोगों ने मस्क के इस बयान का समर्थन किया, वहीं अतिवादी समूह के कुछ यूजर्स ने मस्क को मुद्दे की समझ न होने की बात कही।

रिपब्लिकन पार्टी में कितना प्रभावी है दक्षिणपंथी अतिवादी समूह
रिपब्लिकन पार्टी में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। हालांकि, पार्टी के कई अनुभवी और पुराने नेता अभी भी अपने वोटर बेस के लिए उदारवादी मतदाताओं पर निर्भर हैं। हालांकि, ट्रंप का मामला उनसे बिल्कुल उल्टा है। अमेरिका में उनके कट्टर समर्थकों का आंकड़ा करोड़ों में है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव हारने के बाद उनके इन्हीं अतिवादी कट्टर समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हिंसा को अंजाम दिया था। इन घटनाओं के चलते तब ट्रंप की राजनीति रिपब्लिकन पार्टी में ही हाशिए पर चली गई थी।

2022 की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की तरफ से प्रचारित एक स्टडी में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) रिपब्लिकन्स को ऐसी श्रेणी में रखा था, जो पार्टी से सिर्फ इस वजह से जुड़े हैं, क्योंकि उन्हें डोनाल्ड ट्रंप के लिए वोट करना है। ये लोग मानते थे कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के साथ सच में धोखाधड़ी हुई है और जो बाइडन एक अवैध राष्ट्रपति हैं। इस स्टडी में कहा गया था कि कुल रिपब्लिकन्स में से सिर्फ ट्रंप समर्थक यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन अभियान से जुड़े लोगों की संख्या 33.6 फीसदी है। यह अमेरिका की आबादी की वयस्क आबादी का 15 फीसदी था। माना जाता है कि ट्रंप के यही समर्थक आव्रजन विरोधी नीतियों के पक्ष में हैं।

कौन हैं श्रीराम कृष्णन, जिनकी नियुक्ति को लेकर छिड़ा विवाद?
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आगामी प्रशासन के लिए भारतीय अमेरिकी उद्यमी, पूंजीपति और लेखक श्रीराम कृष्णन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर व्हाइट हाउस के वरिष्ठ नीति सलाहकार के रूप में नियुक्त करने का एलान किया है। ट्रंप ने कहा कि कृष्णन पहले माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर, याहू!, फेसबुक और स्नैप की प्रोडक्ट टीम का नेतृत्व कर चुके हैं। वे डेविड ओ. सैक्स के साथ काम करेंगे, जो व्हाइट हाउस एआई और क्रिप्टो मामलों के विभाग के प्रमुख होंगे।

  • श्रीराम कृष्णन भारत में ही जन्मे और पढ़े-लिखे हैं। वे भारत में माइक्रोसॉफ्ट के लिए काम कर रहे थे, जब 2007 में कंपनी ने उन्हें एल-1 वीजा (कंपनी-टू-कंपनी स्थानांतरम के लिए लगने वाला वीजा) के जरिए अमेरिका ले जाने का फैसला किया। बताया जाता है कि कृष्णन छह साल तक सीएटल में रहे और माइक्रोसॉफ्ट के अज्यूर सॉफ्टवेयर कार्यक्रम से जुड़े रहे। इसके बाद वे सिलिकॉन वैली पहुंचे, जहां उन्होंने स्नैप, फेसबुक, याहू और ट्विटर जैसी कंपनियों के लिए काम किया।
  • कोरोनावायरस महामारी के दौरान श्रीराम कृष्णन और उनकी टेक आंत्रप्रेन्योर  पत्नी आरती राममूर्ति ने क्लबहाउस ऑडियो एप पर एक पॉडकास्ट शुरू किया,जिसमें मेटा के प्रमुख मार्क जकरबर्ग से लेकर एलन मस्क तक का इंटरव्यू किया गया। यह कार्यक्रम बाद में काफी लोकप्रिय हुआ।
  • 2020 के अंत में कृष्णन वेंचर कैपिटल फर्म एंड्रेसेन होरोविट्ज में जनरल पार्टनर बन गए। यह फर्म क्लबहाउस की अहम निवेशकों में से एक रही थी। जब एलन मस्क ने ट्विटर का अधिग्रहण किया तो एंड्रेसेन होरोविट्ज की तरफ से कृष्णन को ही प्रतिनिधि बनाया गया। यह फर्म ट्विटर के अधिग्रहण के लिए मस्क की वित्तीय सहायता में जुड़ी थी। यही मौका था, जब श्रीराम कृष्णन एलन मस्क और उनके करीबी डेविड सैक्स के संपर्क में आए और उनके साथ काम में जुटे। बताया जाता है कि एलन मस्क को कृष्णन का काम काफी पसंद आया और ट्रंप प्रशासन में नियुक्ति के पीछे टेस्ला प्रमुख का बड़ा हाथ रहा।

क्या है एच-1बी वीजा, जिसे लेकर छिड़ा है विवाद?
ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन समर्थकों ने आव्रजन से जुड़े इस पूरे विवाद में जिस नीति का सबसे ज्यादा विरोध किया है, वह है अमेरिका की एच-1बी वीजा नीति, जो कि पेशेवर कामगारों को देश में काम करने की छूट देती है। श्रीराम कृष्णन भी कौशल रखने वाले योग्य विदेशी कामगारों के लिए वर्क वीजा और ग्रीन कार्ड देने की पैरवी कर चुके हैं। ऐसे में अतिवादी दक्षिणपंथियों ने उनके बयान को एच-1बी वीजा सिस्टम से जोड़ दिया है, जो कि पेशेवरों को अमेरिका लाने के लिए अहम जरिया है।

– यह वीजा आमतौर पर उन विदेशी नागरिकों के लिए जारी किया जाता है, जो किसी खास पेशे (जैसे- आईटी प्रोफेशनल्स, आर्किट्रेक्टचर, स्वास्थ्य क्षेत्र, आदि) से जुड़े होते हैं।
– अमेरिकी कंपनियों में भारतीय कामगारों की ज्यादा मांग की वजह से एच-1बी वीजा सबसे ज्यादा भारत के लोगों को ही मिलता है। इस वीजा को हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति का ग्रैजुएट होना जरूरी है।
– इसकी वैधता छह साल की होती है। यानी अमेरिका में रहकर कोई भी व्यक्ति इस वीजा के जरिए वहां छह साल तक काम कर सकता है। हालांकि, इसकी अवधि बढ़ाए जाने का भी प्रावधान भी है।
– इतना ही नहीं एच-1बी वीजा धारक अपने पत्नी और बच्चों को भी एक अन्य वीजा कैटेगरी में अमेरिका ला सकते हैं। इतना ही नहीं अमेरिका में रहने के दौरान यह लोग अमेरिकी नागरिकता के लिए भी आवेदन कर सकते हैं।
– एच-1बी वीजा की खास बात ये है कि यह ऐसे पेशेवरों को मिलता है, जिन्हें अमेरिका में नौकरी का प्रस्ताव मिलता है। यानी यह पूरी तरह से नौकरी देने वाली कंपनी पर निर्भर करता है कि वह किसे अमेरिका में नौकरी के लिए बुलाना चाहती है। अगर नौकरी प्रदाता पेशेवर को निकाल दे और दूसरी कंपनी उसे नौकरी न दे तो वीजा खुद ब खुद खत्म हो जाएगा।

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